बंदूक,तीर व तलवार से धर्म या मज़हब की हिफाजत नहीं होती जहाँ मुहब्बत होती है वहाँ सियासत नहीं होती। ये क्या ईश्वर अल्लाह के नाम पे लड़ते हो हाथों में खंजर लिये कभी इवादत नहीं होती। राम मेरे अल्लाह तेरे ये क्या ईश्वर किसी एक की रियासत नहीं होती। हिन्दू मस्जिद में न जाये,मुसलमान मंदिर में न आये नेक बंदों की ऐसी आदत नहीं होती। धर्म व मजहब क नाम पर तुम्ही कटते मरते हो कभी गीता और कुरान में तो ऐसी खिलाफत नहीं होती। इंसानों ने ही बना रखे हैं ईश्वर और अल्लाह 'पारुल' अन्य जीवों में तो ऐसी अदावत नहीं होती। पारुल शर्मा बंदूक,तीर व तलवार से धर्म या मज़हब की हिफाजत नहीं होती जहाँ मुहब्बत होती है वहाँ सियासत नहीं होती। ये क्या ईश्वर अल्लाह के नाम पे लड़ते हो हाथों में खंजर लिये कभी इवादत नहीं होती। राम मेरे अल्लाह तेरे ये क्या ईश्वर किसी एक की रियासत नहीं होती। हिन्दू मस्जिद में न जाये,मुसलमान मंदिर में न आये नेक बंदों की ऐसी आदत नहीं होती।