बिकती हैं न खुशी कहीं न कहीं गम बिकता हैं। लोग गलतफहमीं मैं हैं कि शायद कहीं मरहम बिकता हैं। इंसान ख्वाहिशों से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा हैं। उम्मीदों से ही घायल हैं और उम्मीदों पर ही जिंदा हैं। कवि चंचल शर्मा #Life