गुस्ताखी माफ़ मल मल के आँख देखता हूँ, पर भरा पूरा शहर मुझे भाता नहीं है एक मैं हूँ और एक तूँ है, इसके सिवा कुछ नज़र आता नहीं है ये माना मेरी जाँ, तूँ सँग में नहीं है मेरा भी जीवन कुछ उमंग में नहीं है ये भाव छिपा के रखना, ये दिल भी बचा के रखना, कहीं खा ना जाए चुगली जुबां , बस होंठ दबा के रखना याद और अहसास भुलाए नहीं जाते ये वो नगमे है जो कभी गाये नहीं जाते हसीनों के नाज़ ओ नखरे, फूटी आँख नहीं सुहाते प्रेयसी के प्रेम वाक्य, मन को ज़रा नहीं भाते कोई जाके कहदे उन्हें, तेरे गालों को छूती ज़ुल्फ़ों से, तूँ कहे तो ज़रा अटखेलियाँ करलूँ, गुस्ताखी माफ़ तेरी कंचन कामिनी काया को, तूँ कहे तो ज़रा देर बाँहों में भरलूँ, गुस्ताखी माफ़ जो उठा मन में, विचारों का ताँता तेरी ही सूरत आ जा रही है हाल ए दिल तुझको, बताऊँ मै कैसे यही चिन्ता रात दिन मुझे खाए जा रही है रचयिता : आनन्द कवि आनन्द कॉपीराइट © 2021 ©Anand Kumar Ashodhiya #गुस्ताखी_माफ #MereKhayaal