देश मेरा बदल रहा गांधी की लाठी आज फिर हारी थी बंदूक की नोक पर खड़ी इंसानियत थी मुक़ बन तमाशा जहाँ देख रह पुलिस खड़ी तालियां बजा रही आवाज उठाने को कल तलक़ जो देश प्रेम था अपनी ही बात कहने को आज बना देसग द्रोह था धर्म की चर्चा प्रेम की निशानी थी संप्रभुता की बातें अब गद्दारी सी थी जल पूरा मेरा ही देश रहा था कही अग्नि सीने में धड़क रही थी कही लिवास देख नज़रें जल रही थी सच में देश मेरा बदल रहा था ©avinashjha 【 Read full poem in Caption】 गांधी की लाठी आज फिर हारी थी बंदूक की नोक पर खड़ी इंसानियत थी मुक़ बन तमाशा जहाँ देख रह पुलिस खड़ी तालियां बजा रही बाहर मौसम सर्द पड़ा था दिलों में अंदर अंगार बरस रहा था स्वाभिमान की लाश लिए मनुज था