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अब बात बनते-बनते बिगड़ गई है, न जाने कैसी ये हवा

अब बात बनते-बनते बिगड़ गई है, 
न जाने कैसी ये हवा चल रही है।   

चाहा कितना भी काश् ऐसा न हो, 
बदनसीबी भी मेरे साथ चल पड़ी है। 

माना कि जब जो चाहा, मिलता नहीं, 
फिर भी ख़्वाहिशें मेरी मचल रही है।

मन को अब तसल्ली दी जाती नहीं, 
कि सब्र अब मुट्ठी से फिसल रही है। 

अब तो मुझे ख़ुद पर रहा यक़ीं नहीं, 
न जाने कैसी ये हवा चल रही है।

©Archana Bharti
  #बदनसीबी