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बाद में उसके पता चला अस्सी बरस के बूढ़े की बीड़ी

बाद में उसके पता चला 
अस्सी बरस के बूढ़े की बीड़ी का धुआँ
उड़ते हुए धुंए में दिखे एक ही खयाल

जिसके पांव में कंच लगे थे
स्थिर पड़ीं चाल 
 

फिर 
चलते-चलते किस्सा 
शुरुआत से लेकर अंत,
हर एक हिस्से में जिक्र रहा 
एक महंत ,
बाद में उसके पता चला 
अस्सी बरस के बूढ़े की बीड़ी का धुआँ
उड़ते हुए धुंए में दिखे एक ही खयाल

जिसके पांव में कंच लगे थे
स्थिर पड़ीं चाल 
 

फिर 
चलते-चलते किस्सा 
शुरुआत से लेकर अंत,
हर एक हिस्से में जिक्र रहा 
एक महंत ,

फिर चलते-चलते किस्सा शुरुआत से लेकर अंत, हर एक हिस्से में जिक्र रहा एक महंत ,