जिंदगी बेजान सी लग रही है, वक्त की लेकर लुकाछिपी अनजान शहर में गुजर रही है! हमने जीने के तरीकों के लिए, ममता का आंचल छोड़ा! बनाने चले जिंदगी , तो इसके लिए मां का काजल छोड़ा! मां के हथेली में, दुनिया का हर सुख नजर आता है ! जब भी देखता हूं तस्वीर मां की, तो अपना वह कल नजर आता है! गुजारा था वह लम्हा, मां के साए से लिपटकर! प्यारा था वह लम्हा, हर साए से बढ़कर ! पत्थर हो या पहाड़, हमें उनसे लड़ना है! उन सपनो के खातिर, हमें पत्थरों को भी चूर चूर करना ! जिंदगी मुकाम देगी, उसी खुसी को त्याग कर! हमें खुशी मिलेगी, मां के सपनों को पूरा कर! हमे खुसी मिलेगी मा के सपनों को पूरा कर!! - सूरज कुमार ख्वाबों का शहर......