तेरे शहर की हवाओं मे वो बात ना रही चलती थी जिससे मेरी साँसे वो साथ ना रही छुपाए थे किताबों मे जो गुलाब हम, ले कर पलकों मे सोते थे तेरे ख्वाब हम वो ख्वाब ना रहा,वो रात ना रही तेरे शहर की हवाओं मे वो बात ना रही चलती थी जिससे मेरी साँसे वो साथ ना रही भटकता रहता हूँ, उन ही राहों मे घूमते थे हम जहाँ, मोहब्बत की पनाहों मे थाम कर हाथ,भरकर तुझको बाहों मे वो राह ना रहा,वो मुलाकात ना रही तेरे शहर की हवाओं में वो बात ना रही चलती थी जिससे मेरी साँसे वो साथ ना रही ^^~अफरोज़ आलम~^^ #alone #एहसाह