मेरी छोटी सी यह नैया पार लगेगी या नहीं कौन बता सकता है चारों ओर यह अथाह सागर दिलाता है अहसास मुझे मेरी छोटी सी हस्ती का- बढाचढ़ा कर पाले मैंने कितने रोग अहंकार की लौ में हो गई भस्म भूल गई, है अपनी औकात, केवल बूंद बराबर- वैश्विक चेतना का अब हुआ अहसास शाायद ,अब पा जाऊं छुटकारा अहं के प्राचीर से यह अथाह सागर भर देगा मुझमें अथाह प्रेम,स्नेह,सौहार्द्य आ गया वह सार्थक पल! ------------- वैश्विक चेतना #कविता