ख़िलाफ़त-ए-मोहब्बत बस इतनी सी थी तुझे अपना कर न सके ....खुद को तेरा बना न सके । मज़बूरी-ए-ज़िन्दगी तेरी ज़िन्दगी से बढ़ के चाहने की सज़ा मेरी.. समझा तो बहुत तुझे नाउम्मीदी तुझे कुछ समझा न सके । Kp ख़िलाफ़त-ए-इश्क़