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"तुम" क्या क्या बताऊँ तुझे तेरे ही बारे में, किस त

"तुम"
क्या क्या बताऊँ तुझे तेरे ही बारे में,
किस तरह जीता हूँ मैं!
तेरे रुख्सार ऐ झलक के सहारे में,
मोहब्बत एक तरफा ही सही,
एक पाक आदागी हैं!
आपकी तरफ से न ही सही,
तेरे अश्क़ के दीदार को सपने देखता हूँ,
अब ये तुम्हे कैसे समझाऊँ!
तुम में मैं ख़ुद को खोजता हूँ,
मेरे दिन की झलक हो तुम,
हर ख्वाब मुक्कमल कहाँ!
मेरे स्याह रात की ललक हो तुम।
विवेक सिंह राजावत। नया तरीका है कविता लिखने का।
"तुम"
क्या क्या बताऊँ तुझे तेरे ही बारे में,
किस तरह जीता हूँ मैं!
तेरे रुख्सार ऐ झलक के सहारे में,
मोहब्बत एक तरफा ही सही,
एक पाक आदागी हैं!
आपकी तरफ से न ही सही,
तेरे अश्क़ के दीदार को सपने देखता हूँ,
अब ये तुम्हे कैसे समझाऊँ!
तुम में मैं ख़ुद को खोजता हूँ,
मेरे दिन की झलक हो तुम,
हर ख्वाब मुक्कमल कहाँ!
मेरे स्याह रात की ललक हो तुम।
विवेक सिंह राजावत। नया तरीका है कविता लिखने का।

नया तरीका है कविता लिखने का।