हशर में मेरा तुम हशर आप देखो मोहब्बत करी है सज़ा पा रहे हैं जहन्नुम जहाँ है खड़ा हूँ वहाँ मैं अज़ाबों का हम भी मज़ा पा रहे हैं रहूँ मैं यहाँ तो मुझे ग़म नहीं है यहाँ हम ग़मों की जज़ा पा रहें हैं नदामत यही है कि जो पा रहे हैं सुना था बहुत हम ज़रा पा रहे हैं ख़ुदा का करम है कि दोज़ख़ किनारे वो तस्वीर दिल से लगा पा रहे हैं सुनो ऐ 'अबीरा' ये मेरी कहानी क्या चाहिये था क्या पा रहें हैं बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 122 122 122 122 हशर- क़यामत, हशर- अंजाम जज़ा- ईनाम