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कलमबद्ध कर कोरे कागज़ पर, अब प्रवाहमय करना चाहूँ क

कलमबद्ध कर कोरे कागज़ पर,
अब प्रवाहमय करना चाहूँ
कष्टदायक समृत्तियों के शब्दों का ठहराव ।

स्थिर पड़ी तन्हा जिन्दगी में,
अब अंबु बहा देना चाहूँ
करके शब्द- सरीता से अक्षरों का सुगम स्राव ।

सहमे अंतर्मन की संकुचित सोच,
अब बेझिझक मिटा देना चाहूँ
बदलकर अपना कठोर अन्तर्मुखी स्वभाव । #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..
कलमबद्ध कर कोरे कागज़ पर,
अब प्रवाहमय करना चाहूँ
कष्टदायक समृत्तियों के शब्दों का ठहराव ।

स्थिर पड़ी तन्हा जिन्दगी में,
अब अंबु बहा देना चाहूँ
करके शब्द- सरीता से अक्षरों का सुगम स्राव ।

सहमे अंतर्मन की संकुचित सोच,
अब बेझिझक मिटा देना चाहूँ
बदलकर अपना कठोर अन्तर्मुखी स्वभाव । #dr_naveen_prajapati#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..