हंसी की आड़ में हरदम मैं अपना ग़म छिपाता हूं
गिरेबां चाक है लेकिन खुशी के गीत गाता हूं
सबक सीखे किताबों से, रहा फिर भी अनाड़ी ही
कभी जल्दी न मैं फितरत किसी की जान पाता हूं
सिसकता हूं अकेले में मैं अक्सर बंद कमरे में
मगर हर बज़्म में नगमे खुशी के ही सुनाता हूं #ghazal