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ख़्वाब फीके लगते हैं, अपने लगते है, टूट जाए तो बड


ख़्वाब फीके लगते हैं, अपने लगते है, टूट जाए तो बड़े चुभने लगते है।
माथे की रंगीनियां ना जाने कब लकीर बनने लगती है।
मैं कल आज और कल एक ही हूं,ना जाने क्या वो तपिश है, जो एक पल कालिख की परतों को एक एक कर हटाता है, और दूसरे पल उन परतों मैं खो जाता है। 
ख़्वाब, कभी जीना सिखाता है, तो कभी एकदम सच सामने ले आता है।
कभी एक शुरुआत की तस्वीर बन जाता है, और कभी वहीं ले आता है जहां एक सास से शुरू सब ख्वाब होते हैं।
ये ख्वाब बड़े फीके लगते हैं...

©Sandeep Awadhiya
  #khaab