तपता दिन तपती रात उमस से जीवन बेहाल न जाग रहा न सो रहा उर वेदना से भर गया पसीना से तरबतर हुआ मन भी तो भींग गया तपता दिन तपती रात वृक्ष न हिल रहा न बयार बह रही धरती आग सा तप गया फूल पत्ती भी अब सूख रहा जीवन खिन्न सा हो गया तन मन सब भींग गया अग्नि वर्षा से जीव अकुला रहा तपता दिन तपती रात न मन मुसका रहा न बोल रहा ओंठों की लाली भी फिकी हुई चित में उदासी छा गयी उर में व्याकुलता समा गया बसुधा अनल से गर्म हुआ पैर रखने का भी न जगह मिला तपता दिन तपती रात ©संगीत कुमार /जबलपुर ✍स्व-रचित🙏🙏🌹 तपता दिन तपती रात उमस से जीवन बेहाल न जाग रहा न सो रहा उर वेदना से भर गया पसीना से तरबतर हुआ मन भी तो भींग गया तपता दिन तपती रात वृक्ष न हिल रहा न बयार बह रही धरती आग सा तप गया फूल पत्ती भी अब सूख रहा जीवन खिन्न सा हो गया तन मन सब भींग गया अग्नि वर्षा से जीव अकुला रहा तपता दिन तपती रात न मन मुसका रहा न बोल रहा ओंठों की लाली भी फिकी हुई चित में उदासी छा गयी उर में व्याकुलता समा गया बसुधा अनल से गर्म हुआ पैर रखने का भी न जगह मिला तपता दिन तपती रात ©संगीत कुमार /जबलपुर ✍स्व-रचित🙏🙏🌹