प्रश्नों का स्वभाव खुजली जैसा है जितना खुजलाओ उतनी बढ़ती जाती है प्रश्न भी दिमाग़ की खुजली जैसा ही है जितना पूछो उतने और निकलते जाते हैँ प्रश्न का एक उत्तर और दस प्रश्नों को जन्म दे जाता है उसी मे उलझें रहे तो यह एक अंतहीन भटकन भी साबित हो सकता है इसीलिए तो पंडितों क़े बीच इतने विवाद है घनघोर चर्चाये हैँ लेकिन अन्त मे कुछ भी तो हाथ मे नहीं होता मूल प्रश्न वही का वहीं सिसकता हुआ पड़ा रह जाता है ©Parasram Arora #प्रश्न है एक पर उत्तर हैँ अनेक