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पद्धरि छन्द तू खोज रहा , जिनका निवास । हर जन्म बन

पद्धरि छन्द

तू खोज रहा , जिनका निवास ।
हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।।
तू भजे नाम , नित सिया राम ।
तन हृदय बने , उन्हीं का धाम ।।

तू महाकाल , के शरण आज ।
रख शीश चरण , सफल बने काज ।।
वह दीन-नाथ ,  हरे संताप ।
कर रहे मुक्त , मत कर विलाप ।।

मन शुद्ध करो , तुम हो प्रवीण ।
बल आत्म भरो , मत समझ क्षीण ।।
सब देख तुम्हें , मिलें प्रभु द्वार ।
वह निर्धन के , प्रति है उदार ।।

निशिदिन जीवन , में है उतार ।
यह समझ सृष्टि , यही संचार ।।
यह पंच तत्व , मिलकर विकास ।
जिससे मानव , नित करे आस ।।

तू बन उदार , उत्तम विचार ।
जन-जन का अब , करो आभार ।।
यह ज्ञान ज्योति , मान अनमोल ।
कुछ बोल आज , न हो अनबोल ।।

२२/११/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पद्धरि छन्द


तू खोज रहा , जिनका निवास ।

हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।।

तू भजे नाम , नित सिया राम ।
पद्धरि छन्द

तू खोज रहा , जिनका निवास ।
हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।।
तू भजे नाम , नित सिया राम ।
तन हृदय बने , उन्हीं का धाम ।।

तू महाकाल , के शरण आज ।
रख शीश चरण , सफल बने काज ।।
वह दीन-नाथ ,  हरे संताप ।
कर रहे मुक्त , मत कर विलाप ।।

मन शुद्ध करो , तुम हो प्रवीण ।
बल आत्म भरो , मत समझ क्षीण ।।
सब देख तुम्हें , मिलें प्रभु द्वार ।
वह निर्धन के , प्रति है उदार ।।

निशिदिन जीवन , में है उतार ।
यह समझ सृष्टि , यही संचार ।।
यह पंच तत्व , मिलकर विकास ।
जिससे मानव , नित करे आस ।।

तू बन उदार , उत्तम विचार ।
जन-जन का अब , करो आभार ।।
यह ज्ञान ज्योति , मान अनमोल ।
कुछ बोल आज , न हो अनबोल ।।

२२/११/२०२३   -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पद्धरि छन्द


तू खोज रहा , जिनका निवास ।

हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।।

तू भजे नाम , नित सिया राम ।

पद्धरि छन्द तू खोज रहा , जिनका निवास । हर जन्म बना , उन्हीं का दास ।। तू भजे नाम , नित सिया राम । #कविता