Nojoto: Largest Storytelling Platform

ये तो अटल सत्य हैं कि सत्य को काटा और छाँटा नही जा

ये तो अटल सत्य हैं कि सत्य को काटा और छाँटा नही जा सकता हैं लेकिन कुछ सत्य ऐसे भी होते हैं जो सामान्य इंसान(स्त्री एवमं पुरुष दोनों संयुक्त रूप से)अपने सम्पूर्ण जीवन मे कभी भी स्वीकार नही कर सकते हैं,इसलिए नही की उनमें सत्य को जांचने और परखने की कसौटी का स्प्ष्ट मानक नही हैं अपितु इसलिए कि उनमें सत्य को स्वीकार करने का साहस नही होता है। शायद इसे ही समाज कटुसत्य कहता है।
ये सत्य प्रायः किसी उम्मीद,आशा,विश्वास और रिश्ते के अंत या फिर किसी परम स्नेही के श्वास के अंत के केन्द्रक होते हैं।
इस सत्य का विरोधी मैं भी हूं इसलिए नही की यह सत्य झूठ हैं बल्कि इसलिए कि मैं इस सत्य को स्वीकार करने का साहस नही रखता हूँ।
यह कटु सत्य कुछ भी हो सकता हैं जैसे कि एक बांझ स्त्री अपने सम्पूर्ण जीवन में यह कभी भी नही स्वीकार कर सकती हैं कि वह माँ नही बन सकती,प्रसव के दौरान एक स्त्री यह कभी नही स्वीकार कर सकती कि उसका बच्चा मर चुका है,इसी भांति प्रसव पीड़ा के दौरान एक पति भी अपनी पत्नी के परलोक जाने की सत्यता से डरता है,एक सैनिक के बलिदान पर उसके परिवार वाले भी सत्य को स्वीकार नही करना चाहते हैं।
एक बेरोजगार यह कभी नही स्वीकार कर सकता हैं कि उसे नौकरी नही मिलेगी क्योंकि नौकरी न मिलने का सत्य उसके लिए अत्यंत भयावह हैं।
एक प्रेमी/प्रेमिका कल्पना में भी किसी अन्य के साथ अपने प्रियतम/प्रियतमा को एक सूत्र में बंधते नही स्वीकर कर सकते है।
किसी अपने ह्रदय प्रिय के महापरिनिर्वाण को स्वीकार कर लेना कोई सामान्य क्रिया नही हैं।मैं बहुत बड़ा जिगरा रखने वाला होकर भी इस सत्य से बहुत डरता हूँ।क्योंकि ऐसे सत्य आत्मा को कचोटते हैं। कलेजे को छलनी कर देते है।
मैं खुद चाहता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों में सत्य को गूंगा बना दिया जाए,अगर सत्य गूंगा नही हो सकता हैं तो मुझे ही बहरा बना दिया जाए।
सादर प्रणाम।
🙏🙏🙏🙏🙏

©Durgesh Tiwari..9451125950 sdt

#citylight
ये तो अटल सत्य हैं कि सत्य को काटा और छाँटा नही जा सकता हैं लेकिन कुछ सत्य ऐसे भी होते हैं जो सामान्य इंसान(स्त्री एवमं पुरुष दोनों संयुक्त रूप से)अपने सम्पूर्ण जीवन मे कभी भी स्वीकार नही कर सकते हैं,इसलिए नही की उनमें सत्य को जांचने और परखने की कसौटी का स्प्ष्ट मानक नही हैं अपितु इसलिए कि उनमें सत्य को स्वीकार करने का साहस नही होता है। शायद इसे ही समाज कटुसत्य कहता है।
ये सत्य प्रायः किसी उम्मीद,आशा,विश्वास और रिश्ते के अंत या फिर किसी परम स्नेही के श्वास के अंत के केन्द्रक होते हैं।
इस सत्य का विरोधी मैं भी हूं इसलिए नही की यह सत्य झूठ हैं बल्कि इसलिए कि मैं इस सत्य को स्वीकार करने का साहस नही रखता हूँ।
यह कटु सत्य कुछ भी हो सकता हैं जैसे कि एक बांझ स्त्री अपने सम्पूर्ण जीवन में यह कभी भी नही स्वीकार कर सकती हैं कि वह माँ नही बन सकती,प्रसव के दौरान एक स्त्री यह कभी नही स्वीकार कर सकती कि उसका बच्चा मर चुका है,इसी भांति प्रसव पीड़ा के दौरान एक पति भी अपनी पत्नी के परलोक जाने की सत्यता से डरता है,एक सैनिक के बलिदान पर उसके परिवार वाले भी सत्य को स्वीकार नही करना चाहते हैं।
एक बेरोजगार यह कभी नही स्वीकार कर सकता हैं कि उसे नौकरी नही मिलेगी क्योंकि नौकरी न मिलने का सत्य उसके लिए अत्यंत भयावह हैं।
एक प्रेमी/प्रेमिका कल्पना में भी किसी अन्य के साथ अपने प्रियतम/प्रियतमा को एक सूत्र में बंधते नही स्वीकर कर सकते है।
किसी अपने ह्रदय प्रिय के महापरिनिर्वाण को स्वीकार कर लेना कोई सामान्य क्रिया नही हैं।मैं बहुत बड़ा जिगरा रखने वाला होकर भी इस सत्य से बहुत डरता हूँ।क्योंकि ऐसे सत्य आत्मा को कचोटते हैं। कलेजे को छलनी कर देते है।
मैं खुद चाहता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों में सत्य को गूंगा बना दिया जाए,अगर सत्य गूंगा नही हो सकता हैं तो मुझे ही बहरा बना दिया जाए।
सादर प्रणाम।
🙏🙏🙏🙏🙏

©Durgesh Tiwari..9451125950 sdt

#citylight