Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल :- चलो न मोड़ पर किसी से बन के अजनबी मिलें । न

ग़ज़ल :-

चलो न मोड़ पर किसी से बन के अजनबी मिलें ।
नई-नई पहल करे नई-नई खुशी मिले ।।

खिला नही अभी यहाँ गुलाब वह बहार का ।
निकल पड़े तलाश में कली कहीं खिली मिले ।।

बरस रही घटा जहाँ महक रही जमीन है ।
कदम-कदम बढ़ा उधर जिधर महक वही मिले ।।

नज़र-नज़र बदल गई जुबान फिर फिसल गई ।
हसीन रूप देख दिल कहे कि ज़िन्दगी मिले ।।

मचल-मचल उठे जिया कहे पिया जरा हँसो ।
मधुर-मधुर अधर लगे गुलो कि केतकी मिले ।। 

२९/०८/२०२३    - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 
1212   1212    1212    1212

चलो न मोड़ पर किसी से बन के अजनबी मिलें ।
नई-नई पहल करे नई-नई खुशी मिले ।।

खिला नही अभी यहाँ गुलाब वह बहार का ।
निकल पड़े तलाश में कली कहीं खिली मिले ।।
ग़ज़ल :-

चलो न मोड़ पर किसी से बन के अजनबी मिलें ।
नई-नई पहल करे नई-नई खुशी मिले ।।

खिला नही अभी यहाँ गुलाब वह बहार का ।
निकल पड़े तलाश में कली कहीं खिली मिले ।।

बरस रही घटा जहाँ महक रही जमीन है ।
कदम-कदम बढ़ा उधर जिधर महक वही मिले ।।

नज़र-नज़र बदल गई जुबान फिर फिसल गई ।
हसीन रूप देख दिल कहे कि ज़िन्दगी मिले ।।

मचल-मचल उठे जिया कहे पिया जरा हँसो ।
मधुर-मधुर अधर लगे गुलो कि केतकी मिले ।। 

२९/०८/२०२३    - महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 
1212   1212    1212    1212

चलो न मोड़ पर किसी से बन के अजनबी मिलें ।
नई-नई पहल करे नई-नई खुशी मिले ।।

खिला नही अभी यहाँ गुलाब वह बहार का ।
निकल पड़े तलाश में कली कहीं खिली मिले ।।