लोग यूँही आते और जाते रहेंगे, फ़स्ल-ए-बहाराँ मुस्काते रहेंगे, समस्या मेरी बनेगी कल तुम्हारी, विध्न बाधा मन को घबराते रहेंगे, टूटती जुड़ती रहेंगी भावनाएँ, कुछ जुड़ेंगे हृदय के नाते रहेंगे, कशमकश होगी रहो स्पष्ट भीतर, चल निरंतर रात-दिन आते रहेंगे, कर्मपथ पर अग्रसर हो अनवरत, गीत ख़ुशियों के सतत गाते रहेंगे, ध्यान हो चैतन्य का घट में निरंतर, सघन बादल गगन में छाते रहेंगे, आत्मनिर्भर बनो गुंजन मुस्कुराओ, ख़ुदा अपना फ़ज़ल बरसाते रहेंगे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #आत्मनिर्भर#