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सुबह का समय था, वो बूढ़ी जान को घसीटते हुए हाथ में

सुबह का समय था, वो बूढ़ी जान को घसीटते हुए हाथ में पूजा की थाली को लिए मंदिर से लौट रही थी। मोड़ से मुड़ते ही 200 गज़ पर उसे अपनी दो मंजिला कोठी नज़र आई। एक पल रुक कर ठंडी सांस ली और अपनी मंजिल को निहारा। 
          लेकिन अपनी कोठी को निहारते-निहारते सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई। कोठी की प्रथम मंजिल से इकलोती बहु किसी युवक से जो की गेट के इस पार खड़ा था बतिया रही थी। दूसरा झटका तब लगा और थाली में पड़ा पुष्प भी कांप गया, जब वह उसे जल्दी- जल्दी वहां से जाने के लिए कह रही थी। युवक साधारण कपड़ों में था, शायद पैदल ही आया  था। और वह युवक सीधा ही सोसायटी के मुख्य द्वार की ओर चल पड़ा। 
          अब बूढ़ी हडि्डयों के गट्ठर के सामने एक और चुनौती थी, उस युवक को पकड़ना। अपने पहाड़ से शरीर को लेकर,अपनी टांगों को घसीटती हुई वो लगभग भाग ही पड़ी। और आखिर उस युवक को गेट से पहले ही पकड़ लिया।
          "बताओ बी नाइन पर क्या करने ग‌ए थे", जाते ही प्रश्न दाग दिया। थके हुए कदमों पर निराश मन लिए युवक ने माता जी को निहारा। माता जी हांफ रहे थे और बुरी तरह मानसिक और शारीरिक रूप से टूटे हुए लग रहे थे। मूंह से बस इतना ही निकला,"कौन सा बी नाइन? मैं समझा नहीं।" माता जी ने पीछे मुड़कर अपनी कोठी की और इशारा किया।
          "माता जी पिछले दो दिन से भूखा हूं, मजबूर हो कर दो रोटी के लिए उस दरवाज़े तक गया था", सफाई में बस लाचार युवक यह ही कह पाया। अब माता जी का अगला प्रश्न था,"तुम्हें वहां पर क्या जवाब मिला?" उन्होंने कहा,"माफ़ करना, कुछ भी नहीं है",युवक ने स्पष्टीकरण दिया।
          माता जी युवक का स्पष्टीकरण सुन कर भड़क गई और गुस्से में बोली,"उसकी इतनी हिम्मत कि वो मना करे, चल मेरे साथ" और अपनी कोठी की ओर चल पड़ी। पीछे-पीछे माता जी को मन ही मन दुआएं देता हुआ चला पड़ा। माता जी आगे-आगे बुड़बुड़ाती हुई चल रही थी। माता जी अपने गेट के पास पहुंच कर रुक गई। अब माता जी आवाज़ अब स्पष्ट सुनाई देने लगी। "कुछ देर के लिए घर इन लड़कियों के हवाले क्या छोड़ जाओ, यह खुद को घर की मालकिन समझ लेती हैं", फिर माता जी युवक की ओर मुड़कर बोली, "वो कौन होती है तुम को मना करने वाली, वो कोई घर की मालकिन है, घर की मालकिन मैं हूं, मैं अब तुम को कहती हूं, जा बाबा माफ़ कर।"

©Harvinder Ahuja # घर की मालकिन

#letter
सुबह का समय था, वो बूढ़ी जान को घसीटते हुए हाथ में पूजा की थाली को लिए मंदिर से लौट रही थी। मोड़ से मुड़ते ही 200 गज़ पर उसे अपनी दो मंजिला कोठी नज़र आई। एक पल रुक कर ठंडी सांस ली और अपनी मंजिल को निहारा। 
          लेकिन अपनी कोठी को निहारते-निहारते सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई। कोठी की प्रथम मंजिल से इकलोती बहु किसी युवक से जो की गेट के इस पार खड़ा था बतिया रही थी। दूसरा झटका तब लगा और थाली में पड़ा पुष्प भी कांप गया, जब वह उसे जल्दी- जल्दी वहां से जाने के लिए कह रही थी। युवक साधारण कपड़ों में था, शायद पैदल ही आया  था। और वह युवक सीधा ही सोसायटी के मुख्य द्वार की ओर चल पड़ा। 
          अब बूढ़ी हडि्डयों के गट्ठर के सामने एक और चुनौती थी, उस युवक को पकड़ना। अपने पहाड़ से शरीर को लेकर,अपनी टांगों को घसीटती हुई वो लगभग भाग ही पड़ी। और आखिर उस युवक को गेट से पहले ही पकड़ लिया।
          "बताओ बी नाइन पर क्या करने ग‌ए थे", जाते ही प्रश्न दाग दिया। थके हुए कदमों पर निराश मन लिए युवक ने माता जी को निहारा। माता जी हांफ रहे थे और बुरी तरह मानसिक और शारीरिक रूप से टूटे हुए लग रहे थे। मूंह से बस इतना ही निकला,"कौन सा बी नाइन? मैं समझा नहीं।" माता जी ने पीछे मुड़कर अपनी कोठी की और इशारा किया।
          "माता जी पिछले दो दिन से भूखा हूं, मजबूर हो कर दो रोटी के लिए उस दरवाज़े तक गया था", सफाई में बस लाचार युवक यह ही कह पाया। अब माता जी का अगला प्रश्न था,"तुम्हें वहां पर क्या जवाब मिला?" उन्होंने कहा,"माफ़ करना, कुछ भी नहीं है",युवक ने स्पष्टीकरण दिया।
          माता जी युवक का स्पष्टीकरण सुन कर भड़क गई और गुस्से में बोली,"उसकी इतनी हिम्मत कि वो मना करे, चल मेरे साथ" और अपनी कोठी की ओर चल पड़ी। पीछे-पीछे माता जी को मन ही मन दुआएं देता हुआ चला पड़ा। माता जी आगे-आगे बुड़बुड़ाती हुई चल रही थी। माता जी अपने गेट के पास पहुंच कर रुक गई। अब माता जी आवाज़ अब स्पष्ट सुनाई देने लगी। "कुछ देर के लिए घर इन लड़कियों के हवाले क्या छोड़ जाओ, यह खुद को घर की मालकिन समझ लेती हैं", फिर माता जी युवक की ओर मुड़कर बोली, "वो कौन होती है तुम को मना करने वाली, वो कोई घर की मालकिन है, घर की मालकिन मैं हूं, मैं अब तुम को कहती हूं, जा बाबा माफ़ कर।"

©Harvinder Ahuja # घर की मालकिन

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# घर की मालकिन #letter #प्रेरक