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न खुला आँगन, हैं छोटे छोटे बंद चार दीवारी के घर, व

न खुला आँगन, हैं छोटे छोटे बंद चार दीवारी के घर,
वह पहले जैसी सुहानी सी सुबह, अब रह गई है कहाँ।
आजकल के बच्चे क्या जानें ओस की बूंदें पेड़ों पर,
खुली छतें भी अब इतनी कहाँ हैं, वे जाकर बैठें जहाँ।

©Amit Singhal "Aseemit" #सुहानी #सी #सुबह