तेरी शादी मे कैसे आऊं समझ नही आता किताब उठाऊं या नाचु गाऊं समझ नही आता । करीब है तु दिल के इसीलिए उलझन है, पढ़ाई करूं या बारात मे जाऊं समझ नही आता । यूं तो चार कदम की दूरी है तेरे और मेरे घर की, पर पढ़ाई की खाई कैसे मिटाऊं समझ नही आता । अरमान तो बहुत थे तुम्हारी शादी के पर क्या करे, बलवान समय को कैसे हराऊं समझ नही आता । रोज नही आ सकता इतना तो पता है, एक दिन आकर ही काम चलाऊं समझ नही आता । मै साथ रहुं न रहुं तु खुश रहना हमेशा, तेरी खुशी से मै खुश हो जाऊं समझ यही आता । Friendship Shayri