जल रही है धरती 00000000000 जल रही है धरती,फैल रहा है आतंकी धर्म, आती नहीं है थोड़ा भी,अधर्मियों को शर्म। कौन किसको कैसे समझाएं, हिंसा नहीं अहिंसा है मानव धर्म। चक्की में पीस रहा है आतंक से भविष्य, धरती का बदल रहा है रक्तपात से दृश्य। अग्नि ज्वाला में जल रहा है मानवता का जीवन, काला धुंआ छा रहा है,जहर फैला रही है पवन। उजड़ रही है धरती से,इंसानों की बस्ती, मीट रही है धीरे-धीरे अब संस्कार की हस्ती। प्रफुल्लित हो रहा है हैवानो का करम, जल रही है धरती,फैल रहा है आतंकी धर्म।। ००००००००००००००००००००००००००००० प्रमोद मालाकार कि कलम से 22.10.2023 ©pramod malakar #जल रही है धरती।