ज़ब छलक उठी जज्बातो की गगरी उछल पड़ा था ह्रदय और उद्वेलित भी हुआ था पर कोरी रही मन की नगरी भूला भटका वो मनचिन्हा सा पल आया था मेरे घर पर उसे मै बिठाता कंहा? खिलाता क्या ? साधारण बोलचाल की भाषा भी तो वह कहा समझता है फिर गंध नाद और रंगो का सामूहिक समारोह वो मनाता कहा? #जज्बातो की गगरी......