मुझे आईने में वोह नज़र आते हैं दूर हैं पर रूबरू नज़र आते हैं इश्क़ की है ये अजब कारीगरी जिधर देखूं वहीं नज़र आते हैं । गर्मियों की धूप में ज़ुल्फ़ों का साया सर्द रातों में उनकी यादों का लिहाफ बारिशों में हुस्न की हैं बिजलियाँ बहारों में हर गुलाब में नज़र आते हैं मुझे आईने में वोह नज़र आते हैं दूर हैं पर रूबरू नज़र आते हैं मेरी उम्मीद की है वोह आखरी किरण मेरी आशाओं का है वोह सुनहरा ख्वाब स्याह रात का माहताब गर हैं वोह सुबह के आफताब में नज़र आते हैं मुझे आईने में वोह नज़र आते हैं दूर हैं पर रूबरू नज़र आते हैं हर मंज़िल पर उनको पाने की है जुस्तजू हर सफर में हाथ थामे नज़र आते हैं। हुस्न-ए-काफिर को पाने की है आरज़ू, मोमिन के दुआओं में लेकिन नज़र आते हैं मुझे आईने में वोह नज़र आते हैं दूर हैं पर रूबरू नज़र आते हैं ©Sameer Kaul 'Sagar' #Surat #urdu #poetry #ghazal #love #Judaai #pyaar #alone #sameerkaulsagar