लफ्जों को दिल में दफना तो दिया मैं मगर परेशां हूँ फिर भी, लिफाफों से भी मोहब्बत की वही खुशबुएँ उङा करती हैं। हँस कर कहा करते है लोग महफिल में अपनी दास्तान, सिले होंठ, झुकीं नजरें भी कुछ कहानी बयां करती हैं। इन हवाओं को परवाह नहीं है किसी के हिस्से की रौशनी से अंधेरे की खिलाफत के वास्ते शमा आन में जला करती हैं। ✍मन्मंथ ©Manmanth Das #शायरी #लिफाफे #मन्मंथ