मस्ती की पाठशाला से थे जिनमें जिंदगी के किताबों का बोझ हमें उठाना न था रिश्तों में एक दूसरे के शिकवे शिकायतों का कोई नजराना न था जहां मंडली जमी वहीं हँसी के ठहाके गूंजे दिखावे के मुखोटों का वो बोझिल जमाना न था जी करता है आज भी तोड़ कर ये बेड़ियां रिश्तों के जिम्मेदारी की लौट जायें उसी पल में जहां दोस्तों का साथ हो जो खुशियों की सौगात हो। ©alka mishra #yaaron #NojotoWritingPrompt