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अर्धरात्रि है, मौन है । तुम तो नहीं हो, पता है मुझ

अर्धरात्रि है, मौन है ।
तुम तो नहीं हो, पता है मुझको
अशांत कर रहा कौन है ??

ये तेरी यादें हैं शायद ।
हाॅं मुझको तो यही है लगता ।।

तुम होती गर निकट जो मेरे,
भुजपाशो़ में भरकर तुमको कहता यह तुमसे मैं लड़की—
तुमने मुझे वेदना दी है, अब तुम हीं उपचार करो
नयनों को लो चूम, सुला दो, कुछ क्षण मुझको प्यार करो ।।

लेकिन तुम तो बहुत दूर उस भाग्यबली की भुजपाशों में,
मेरी सभी वेदनाओं से अंजानी हो ।
तुम केवल अब स्वप्न हो मेरी,
तुम इन ऑंखों का पानी हो ।।

पता नहीं फिर भी क्यों तुमसे घृणा नहीं होती है मुझको,
पता नहीं क्या बात है लड़की, तुम बिसरी कभी नहीं बिसराए ।
तीन वरस तेरे बीन बीते, अब भी तेरी यादें ज्यों की त्यों हैं लड़की,
अर्धरात्रि में बिस्तर पर मैं जब होता हूॅं, घेर है लेती
वजह यही है सो न सकूॅं मैं, वजह यही है नींद नहीं आती

#अजनबी_सा_इश्क़

©Ujjwal Kumar Mishra
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