भ्रष्टाचार बरसों की मेहनत पर भारी चार रोज के सपने हो गये, गद्दी मंथरा की हो गयी अबकी राम बनवास ही रह गये,महलों की जगमगाहट मुस्कराते रही, झोपड़ी में रहता था जो, झोपड़ी का रह गया।बाबू वो अदबों वाला अचार के लिए आचार बेच आया, पेट भरने की आस में वो उम्र सारी काट गया, चार वक़्त की रोटी वाला दो जून की रोटी खेंच लाया। #भ्रष्टाचार