खुद्दारी का चढ़ जाता जब रंग है, मरने से पहले तक लड़ता जंग है, झंझावातों के डर से क्या घबराना, डरने की क्या बात अगर तू संग है, ठोकर पर रखी है दुनिया की दौलत, नशा चढ़ा प्रभु प्रेम का जैसे भंग है, दाम न झोली में दिल में हीरा मोती, ठाठ देखकर दुनिया रहती दंग है, जब भी मिला रहा न दूजा कोई वहाँ, प्रेम की गलियाँ सँकड़ी दर भी तंग है, प्यास हृदय की बुझती तेरे घर आकर, मिली तृप्ति मन में भर गया उमंग है, दु:ख संकट के बादल यहाँ नहीं गुंजन, शांति और संतोष से बना सुरंग है, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #खुद्दारी का चढ़ जाता जब रंग है#