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बात मन की मेल खाती है अनेकों लोग से, बेख़बर रहता ह

बात मन की मेल खाती है अनेकों लोग से,
बेख़बर रहता हूँ बचकर इस बला के रोग से,

लोभ,लालच छोड़कर जीना शुरु करिये ज़नाब, 
दूर होंगे कष्ट तन के सिर्फ नियमित योग से,

बढ़ेगी जब उर्वरा इस धरा की फिर खुद-ब-खुद,
कृषक भी समृद्ध होंगे जोड़िये उद्योग से,

ज्ञान,शिक्षा,धन सभी अर्जित किये सन्मार्ग से,
दान, सेवा,धर्म करिये दूर रहिए भोग से,

झड़ रहा अनवरत निर्झर धरा पर उद्वेग से,
सजल सरिता धन्य करती अवनि को उपयोग से,

करो ऐसे कर्म हो जीवन सफल इस जन्म में,
मिला है यह तन मनुज का आपको संयोग से,

मिल गए किस्मत से गुंजन इस जहाँ की भीड़ में,
बन गया परिवार अनुपम स्वयं के ग्रहयोग से,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई

©Shashi Bhushan Mishra #नियमित योग से#
बात मन की मेल खाती है अनेकों लोग से,
बेख़बर रहता हूँ बचकर इस बला के रोग से,

लोभ,लालच छोड़कर जीना शुरु करिये ज़नाब, 
दूर होंगे कष्ट तन के सिर्फ नियमित योग से,

बढ़ेगी जब उर्वरा इस धरा की फिर खुद-ब-खुद,
कृषक भी समृद्ध होंगे जोड़िये उद्योग से,

ज्ञान,शिक्षा,धन सभी अर्जित किये सन्मार्ग से,
दान, सेवा,धर्म करिये दूर रहिए भोग से,

झड़ रहा अनवरत निर्झर धरा पर उद्वेग से,
सजल सरिता धन्य करती अवनि को उपयोग से,

करो ऐसे कर्म हो जीवन सफल इस जन्म में,
मिला है यह तन मनुज का आपको संयोग से,

मिल गए किस्मत से गुंजन इस जहाँ की भीड़ में,
बन गया परिवार अनुपम स्वयं के ग्रहयोग से,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
        चेन्नई

©Shashi Bhushan Mishra #नियमित योग से#