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लिखें है कई ख़त हमने भी बहा के अश्क़ काग़ज़ पर नही है

लिखें है कई ख़त हमने भी
बहा के अश्क़ काग़ज़ पर

नही हैं मेरे नसीब में जो 
लिख दीं वो खुशियां सभी काग़ज़ पर

कभी देखा नहीं ढलता सूरज सागर में
उकेर लिया फिर वो मंज़र ही काग़ज़ पर

थामा नहीं किसी ने कभी हाथ मेरा
तो थाम लिया कलम को ही काग़ज़ पर

सुने नही जब मेरे ग़म किसी ने भी कहीं
महफ़िलें लूटीं फिर उतारकर दर्द कागज़ पर

©Prashant Shakun "कातिब"
  #pshakunquotes  #प्रशांत_शकुन_कातिब  

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