जहाँ कलुषित वाणी का आभास हो, जहाँ अपनेपन का तनिक भास न हो, जहाँ तामसिक विचारों का वास हो, जहाँ मन में व्यभिचार का निवास हो, जहाँ एक-दूसरे के प्रति अविश्वास हो, जहाँ बदलाव की तनिक ना आस हो, जहाँ दूसरो को गिराना ही विकास हो, जहाँ जिस्मों ढंकें पर रूह बेलिबास हो, जहाँ मुंह में मिश्री अंतर्मन में भड़ास हो, जहाँ मन में बैर और मुंह में शाबास हो, जहाँ करूणा,दया का न एहसास हो, जहाँ पर वेद-पुराणों का अट्टहास हो, जहाँ चले जाने पर मन हताश हो, जहाँ पुष्प,गुलाब नही सिर्फ पलास हो, जहाँ का भोजन 'मंदिरा-मांस' हो, जहाँ मन मे मतभेद सौ-पचास हो, ऐसे परिवेश का परित्याग ही बुद्धिमत्ता है! जहाँ कलुषित वाणी का आभास हो, जहाँ अपनेपन का तनिक भास न हो, जहाँ तामसिक विचारों का वास हो, जहाँ मन में व्यभिचार का निवास हो, जहाँ एक-दूसरे के प्रति अविश्वास हो, जहाँ बदलाव की तनिक ना आस हो,