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"शिव हैं भोले, पूरी करते भक्तों की मुराद, माथे पे

"शिव हैं भोले, पूरी करते भक्तों की मुराद,
माथे पे चंद्र, गले में विष,
 त्रिनेत्र के नाथ, स्वयं महिष।
कालकूट पीने वाले, पशुपति महाकाल,
महादेव हैं सृष्टि के आदि और अंत का आधार।
अर्धनरेश्वर रूप, जहां शक्ति संग विराज,
गले में सर्प, हाथों में त्रिशूल का राज।
वृत्रासुर संहारी, करुणा के सागर,
शिव की महिमा में जग गाता है जैकार।"

©नवनीत ठाकुर #शिव हैं भोले, पूरी करते भक्तों की मुराद,
माथे पे चंद्र, गले में विष, त्रिनेत्र के नाथ, स्वयं महिष।
कालकूट पीने वाले, पशुपति महाकाल,
महादेव हैं सृष्टि के आदि और अंत का आधार।
अर्धनरेश्वर रूप, जहां शक्ति संग विराज,
गले में सर्प, हाथों में त्रिशूल का राज।
वृत्रासुर संहारी, करुणा के सागर,
शिव की महिमा में जग गाता है जैकार।
"शिव हैं भोले, पूरी करते भक्तों की मुराद,
माथे पे चंद्र, गले में विष,
 त्रिनेत्र के नाथ, स्वयं महिष।
कालकूट पीने वाले, पशुपति महाकाल,
महादेव हैं सृष्टि के आदि और अंत का आधार।
अर्धनरेश्वर रूप, जहां शक्ति संग विराज,
गले में सर्प, हाथों में त्रिशूल का राज।
वृत्रासुर संहारी, करुणा के सागर,
शिव की महिमा में जग गाता है जैकार।"

©नवनीत ठाकुर #शिव हैं भोले, पूरी करते भक्तों की मुराद,
माथे पे चंद्र, गले में विष, त्रिनेत्र के नाथ, स्वयं महिष।
कालकूट पीने वाले, पशुपति महाकाल,
महादेव हैं सृष्टि के आदि और अंत का आधार।
अर्धनरेश्वर रूप, जहां शक्ति संग विराज,
गले में सर्प, हाथों में त्रिशूल का राज।
वृत्रासुर संहारी, करुणा के सागर,
शिव की महिमा में जग गाता है जैकार।