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तो अक्सर अनेको ही हुस्सन के बाज़ारों से गुज़रता हूँ

तो अक्सर अनेको ही हुस्सन 
के बाज़ारों से गुज़रता हूँ मैं
लेकिन कही तेरे जैसा हसीन नही मिला 

यूं तो अक्सर सजती है 
महफिलें महिखानों मे
लेकिन मैं अब पहले की 
तरह शाराब नही पीता


ज़ाम से ज़ाम मीला कर तो
महफिलों पी जाती है साहब 
यूं महोबत की तनहाई मे तो अकसर 
आशिकों कों खुशीओं की महफिल
मे भी आँखों मे आंसू लिए बैठें मिलते है

©Pagal Shayar 
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