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*पुस्तकों की बेबसी* धूल से लथपथ,अंधेर बंद कमरे मे

*पुस्तकों की बेबसी*

धूल से लथपथ,अंधेर बंद कमरे में, 
कैद हैं,
जीवन प्रकाशित कर देने वाली आदरणीय पुस्तकें,,

बेबस ,मायूस ,निराश हैं
आशा, उम्मीदों के ज्ञान से परिपूर्ण,
वंदनीय पुस्तकें,,

पुस्तकालय खुलें हैं,किताबें बंद हैं,
क्यों?
क्या पुस्तक प्रेमी खो गए हैं ?
दीर्घ निद्रा में सो गए हैं,,?
क्या पुस्तकों के पन्नो पर कांटे हो गए हैं?

शिक्षा का उद्गम,
ज्ञान के सागर की दिव्य धारा,
जिसमे ज्ञान असीमित है,,
बंद पड़ी अलमारियों में सीमित है

वक्त बदल रहा है,समाज बदल रहा है,
हर पल हर क्षण,आज बदल रहा है,,
वक्त के साथ,इस प्रगति के आधार(पुस्तक) का स्थान,,
किसी और(स्मार्ट फोन)को दिया जा रहा है।

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma new poem
#Books
*पुस्तकों की बेबसी*

धूल से लथपथ,अंधेर बंद कमरे में, 
कैद हैं,
जीवन प्रकाशित कर देने वाली आदरणीय पुस्तकें,,

बेबस ,मायूस ,निराश हैं
आशा, उम्मीदों के ज्ञान से परिपूर्ण,
वंदनीय पुस्तकें,,

पुस्तकालय खुलें हैं,किताबें बंद हैं,
क्यों?
क्या पुस्तक प्रेमी खो गए हैं ?
दीर्घ निद्रा में सो गए हैं,,?
क्या पुस्तकों के पन्नो पर कांटे हो गए हैं?

शिक्षा का उद्गम,
ज्ञान के सागर की दिव्य धारा,
जिसमे ज्ञान असीमित है,,
बंद पड़ी अलमारियों में सीमित है

वक्त बदल रहा है,समाज बदल रहा है,
हर पल हर क्षण,आज बदल रहा है,,
वक्त के साथ,इस प्रगति के आधार(पुस्तक) का स्थान,,
किसी और(स्मार्ट फोन)को दिया जा रहा है।

*शिवम् शर्मा (देवा)*

©shivam sharma new poem
#Books