मेरे वादे पर आयी थी वो बगैर गर्म कपड़ो के जाने के वक्त बोली ठण्ड है मजाक किया किसने कहा था ऐसे आने बोली था एक दोस्त उसे मेरे स्वेटर से एलर्जी थी लेकिन मुझे ठिठुरते देख बेचैन हो गया था वो बोला जल्दी घर जाओ अकड़ जाओगी बोली नहीं उसके लिए इतना तो बनता है ख़ुशी है मुझे कष्ट मे नहीं देख पाया जनता हूँ और महसूसता हुँ वो पास होता तो खुद ही शाल बन लिपट जता या फिर ओढ़ी हुईं चादर से मुझे ढक देता इस एहसास का सुख सिर्फ मै महसूस कर रहा हुँ हा और गरमाहट भी ©ranjit Kumar rathour ठण्ड वादों वाली