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आदत बिगड़ जाए तो मुश्किल पड़ती उसे बदलने में, चिक

आदत बिगड़ जाए तो मुश्किल पड़ती उसे बदलने में, 
चिकनाई पर फिसल जाए पग लगती देर सँभलने में,

बिगड़ जाए माहौल शहर का तो घर में रहना बेहतर, 
मौसम हो ख़ुशनुमा तभी आता है मजा टहलने में, 

शक्ति क्षीण होने लगती जब उम्र पार करती यौवन, 
बढ़  जाती  पीड़ा  जोड़ों  में  होता  दर्द  उछलने  में, 

हिम्मत की हद तक जाने का आए जब ख़याल मन में,
होगा क्या परिणाम सोच पल लगता नहीं दहलने में,

रखना पड़ता सब्र अगर अवसर अनुकूल नहीं होता,
रात बीतने दो सूरज को लगता वक़्त निकलने में,

दिल की चाहत आहत करती रहती यारों रह-रहकर, 
ख़्वाब टूट जाए तो मन को लगता समय बहलने में,

देख बोझ जिम्मेवारी का बच्चों के सिर पे 'गुंजन',
मर जाता बचपना स्वयं का लगता बुरा मचलने में,
   ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #लगती देर सँभलने में#
आदत बिगड़ जाए तो मुश्किल पड़ती उसे बदलने में, 
चिकनाई पर फिसल जाए पग लगती देर सँभलने में,

बिगड़ जाए माहौल शहर का तो घर में रहना बेहतर, 
मौसम हो ख़ुशनुमा तभी आता है मजा टहलने में, 

शक्ति क्षीण होने लगती जब उम्र पार करती यौवन, 
बढ़  जाती  पीड़ा  जोड़ों  में  होता  दर्द  उछलने  में, 

हिम्मत की हद तक जाने का आए जब ख़याल मन में,
होगा क्या परिणाम सोच पल लगता नहीं दहलने में,

रखना पड़ता सब्र अगर अवसर अनुकूल नहीं होता,
रात बीतने दो सूरज को लगता वक़्त निकलने में,

दिल की चाहत आहत करती रहती यारों रह-रहकर, 
ख़्वाब टूट जाए तो मन को लगता समय बहलने में,

देख बोझ जिम्मेवारी का बच्चों के सिर पे 'गुंजन',
मर जाता बचपना स्वयं का लगता बुरा मचलने में,
   ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #लगती देर सँभलने में#