अपनी हीं विरासत के पन्नो में उलझ जाता है इंसान। कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाता है इंसान।। माया की इस नगरी में, रिश्तों का जाल बिछा है। लाख कोशिशों के बाद भी सिमट जाता इंसान।। सहमा सहमा रहता है, टूटने के डर से... पर एक ना एक दिन बिछड़ जाता है इंसान।। हौसलों की बुनियाद पर चट्टान बनाता है खुद को... फिर टूट कर बिखर जाता है इंसान।। अपनी हीं विरासत के पन्नो में उलझ जाता है इंसान। कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाता है इंसान।। Copyright @ दीपक विशाल इंसान