आहिस्ता आहिस्ता जिंदगानी ढल जाने को है, बोल तेरा पैगाम अब कब आने को है? यूँ तन्हा चलने में आख़िर मज़ा है कब तक? तू चला आ किसी रोज़ मेरा साथ निभाने को ही। तेरी मुहब्बत में मौसम अक्सर बदलता रहा है, अब मिलेगी धूप या फ़िर घटा छाने को है? अब क़दम थक हैं चुके तुझे यूँ ढूँढते फ़िरते, कर थोड़ी फ़िक्र मेरी कहाँ परवाह ज़माने को है। आजा तुझको मैं अपने काजल का करुँ टीका, शायद कोई नई बला नज़र लगाने को है। रिझाती नहीं इस दुनिया की कोई चीज़ मुझे, इक़ तेरा प्यार ही अब बस मुझको पाने को है।— % & ♥️ Challenge-826 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।