एक सिमटी हुई कली कहीं खोई है... सब नजरों से छिप कर ..बेइंतहा खामोशी में रोई है ।। किस्से लिखे जा रहे थे जब .. खिलते हुए गुलाब पे .. उसने नजदीकी बनाई कांटो से ... हर चुभन मुस्कुरा के सहती रही ... कोई आंच ना आने पाए बस ... उस फूल के शबाब पे ... अपने वजूद की उसे जैसे कोई ख्वाइश नही ... किसी शायर के ख्यालों की कोई आदत नहीं... वो खुश है उस फूल के यूँ खिलने से ... उसके नूर पे यूँ लोगो के मिटने से ... बस इस तरह कुछ मुस्कुराहट उसने अपने लिए पिरोई है ... एक सिमटी हुई कली कहीं खोई है .... #कली