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वो पहले जैसी फिजा मे रंगत क्यो अब नही है क्यो अब



वो पहले जैसी फिजा मे रंगत क्यो अब नही है क्यो अब नही है
बिन तेरे मुझको कहीं भी राहत  क्यों अब नही है क्यों अब नही है 1

हिंदू मुस्लिम रहते थे संग संग एक था याराना एक यारी
हम सबके दिलो में वैसी चाहत क्यो अब नही है क्यों अब नही है

हवाओं से ये बादल की बूंदे लड़ती झगड़ती थी पहले
इन बरसातो में वैसी बगावत क्यों अब नही है क्यों अब नही है

लैला मजनू हीर और रांझा की तू बाते करती थी पहले
तेरे दिल में वैसी मोहब्बत क्यो अब नही है क्यों अब नही है

गांव की गलियों में हम पहले झूला करते थे संग झूले 
अहले जहा में किसी को फुर्सत क्यो अब नही है क्यों अब नही है

होता था मुझसे तेरा सवेरा मुझसे ही थी राते तेरी 
वो जो पहले थी तेरी  आदत क्यो अब नही है क्यो अब नही है

©shahrukh yasini
  यासीन की गजले

यासीन की गजले #शायरी

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