*मानुष कितना पीछे है* *तृष्णा कितनी आगे है ।* *तृप्त करे सो ठहरी तृष्णा* *मनुज जा रहा भागे तृष्णा।।* *माया लिप्सा मन में बैठी* *माया मन ना जाने है।* *इक धन तोड़े रिश्ते को* *इक धन रिश्ता पहचाने है।।* *तृष्णा माया मिल करके* *यह मनवा भ्रमित नचाए है ।* *आग लगा दी उस पूंजी में* *जो पुरखे रहे बचाए है।।* *छोड़ - छाड़ के सब संबंधों को* *खोज रहे सब प्रचुर धनम् को ।* *कौन -कहां अब कहता है ?* *कि संतोषम है परम सुखम को।।* ©Rishi Ranjan #PhisaltaSamay #Poetry #poem