मैं जब देखता हूँ अपनी जिन्दगी को, जिन्दगी एक किताब नज़र आती है, इसके हर एक पन्ने को गौर से देखा, जिन्दगी बेबस लाचार नज़र आती है। इसके कुछ पन्नों में कहानी लिखा है, तो कुछ पन्नें तो बिलकुल ही कोरे हैं, कुछ कहानियाँ जीवन के पूर्ण हुए, तो कुछ कहानी अभी भी अधूरे हैं। इन पन्नों में खुशियाँ है तो ग़म भी है, कहीं ज्यादा हैं तो कहीं कम भी है, इनमें जीवन में छाये बहार भरपूर हैं, कहीं पर खुशियाँ हमसे कोसों दूर है। इन पन्नों में कहीं चिलचिलाती धूप है, तो कहीं पर तरु की शीतल छाया है, कहीं जीवन की ठंडी बहती बयार है, तो कहीं आशा निराशा से टकराया है। जिन्दगी क्या है कोई नहीं जान पाया है, जो जाना उसके लिए मात्र मोह-माया है, ये मेरी जिन्दगी बन जाती किताबों सी, पर पूरे पन्नों को कोई नहीं पढ़ पाया है। #ज़िन्दगी_बन_जाती_किताबों_सी #newchallenge There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio) Today's Topic is *ज़िन्दगी बन जाती किताबों सी* Any writer can write anything but *remember the rule*