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"सुबह सुबह की ओस से भी ज्यादा कोमल, प्रभात के सूर

"सुबह सुबह की ओस से भी ज्यादा कोमल, 
प्रभात के सूर्य की पहली किरण जैसी गुनगुनी।
रूई के मरमरी फ़ाहे से भी ज्यादा मधु मृदुल, 
हृद्यान्शी, लाडली, चितेरी, घनेरी, चंचला, मेरी।
जब तुम मेरी गोद में बैठकर खिलखिलाती हो,
तब में प्रकृति का सबसे अनूठा हिस्सा होता हूं।
तुम्हारी नन्ही उंगलियां जब मेरी हथेली पर, 
फुदकती गौरैया सी अठखेलिया करती है।
तब कुबेर भी अनंत कोष होकर भर देते हैं, 
मेरा लबालब भरा मुग्ध मुक्ताकाश हृदय।
जब तुम मेरे कंधे पर निर्द्वन्द सो जाती हो,
मैं हो उठता हूं हरा भरा घनेरे वृक्ष के जैसा।
मेरी हर पीडा का एकलौता रामबाण इलाज,
तेरी खुशी से टिमटिमाती दिये सी आँखें।
ओ मेरी राजनंदनी, मनेरी सोन चिरैया, 
तू मेरी राधा किशोरी तो में वृषभान हो जाता हूँ।
तू मेरी सिया सुकुमारी तो वैदेह हो जाता हूँ।"

©PAVNESH K MISHRA #मेरी_बेटी

#Rose
"सुबह सुबह की ओस से भी ज्यादा कोमल, 
प्रभात के सूर्य की पहली किरण जैसी गुनगुनी।
रूई के मरमरी फ़ाहे से भी ज्यादा मधु मृदुल, 
हृद्यान्शी, लाडली, चितेरी, घनेरी, चंचला, मेरी।
जब तुम मेरी गोद में बैठकर खिलखिलाती हो,
तब में प्रकृति का सबसे अनूठा हिस्सा होता हूं।
तुम्हारी नन्ही उंगलियां जब मेरी हथेली पर, 
फुदकती गौरैया सी अठखेलिया करती है।
तब कुबेर भी अनंत कोष होकर भर देते हैं, 
मेरा लबालब भरा मुग्ध मुक्ताकाश हृदय।
जब तुम मेरे कंधे पर निर्द्वन्द सो जाती हो,
मैं हो उठता हूं हरा भरा घनेरे वृक्ष के जैसा।
मेरी हर पीडा का एकलौता रामबाण इलाज,
तेरी खुशी से टिमटिमाती दिये सी आँखें।
ओ मेरी राजनंदनी, मनेरी सोन चिरैया, 
तू मेरी राधा किशोरी तो में वृषभान हो जाता हूँ।
तू मेरी सिया सुकुमारी तो वैदेह हो जाता हूँ।"

©PAVNESH K MISHRA #मेरी_बेटी

#Rose