White "गुलामी का सौदा" ये दुनिया रोज़ तुझे जूता मारे, लानतों के कड़वे घूँट पिलाए। फिर भी तू इसकी ख़ाक चाटे, क्या लालच है, जो सर झुकाए? कहता है बस पेट की बात है, पर सच तो कुछ और भी साथ है। पेट की आग तो बुझ भी जाए, पर ख्वाहिशें कब चैन से सो पाए? तू बिकता है, मगर सवाल ये है, क्या कीमत तुझ पर लगी है? तेरी ज़ंजीरें सोने की हैं, या बस तेरी आदत जमी है? जो जलील करे, तू उसी का है, जो सच कहे, वो अजनबी सा है। तू डरता नहीं, तू मजबूर नहीं, तू ख़ुद ही इस खेल में मशगूल सही। ज़रा सोच, अब भी वक़्त है, ये गुलामी नहीं, इक सौदा है। तेरी वफादारी, तेरा ईमान बिका, या बस तेरा ज़मीर ही सस्ता था? ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर गुलामी का सौदा