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मैंने लैटर को एक नहीं कई बार पढ़ा, मुझे यकीन नहीं

मैंने लैटर को एक नहीं कई बार पढ़ा, मुझे यकीन नहीं हो रहा था,कि सुधा के साथ ऐसा हुआ।सुधा एक पढ़ी-लिखीसंस्कारी लड़की थी,हम दोनों एक ही क्लास में पढ़े थे।
वो पढ़ने में बहुत तेज तो नहीं पर ठीक थी हां अपने सरल स्वभाव के कारण सभी बच्चों से लेकर टीचर तक की चहेती थी। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है,जब कभी मुझे किसी बात पर सजा मिलती या पिटाई होती तो उसे बहुत तकलीफ होती। पर क्लास में सबसे ज्यादा उसे परेशान मै ही करता था।फिर बारहवीं के बाद उसकी शादी गांव में तय कर दी गई 
सुधा ने शादी में सभी सहेलियों को बुलाया था, मैं अपनी बहन के साथ उसे छोड़ने गया था, चूंकि रात ज्यादा हो गई थी इसलिए उसके भाई ने कहा सुबह विदाई के बाद चले जाना। उसके बाद अपनी बहन से एक-दो बार उसके बारे में पता चला कि उसे वह हर तरह से मैनेज करना पड़ता है।क्योंकि शहर और गांव के माहौल में काफी फर्क होता है।
इतने में फोन की घंटी बजी और मेरा ध्यान टूटा, किसी कस्टमर का फोन था। मैंने उस ओर ध्यान ना देकर लैटर को फिर से पढ़ना शुरू किया, लिखा था, मैं हार गई सुधांशु
पापा-मम्मी तो अब रहे नहीं, भाई भाभी ने मुझसे नाता तोड दिया है। शादी के कुछ ही साल बाद उनका देहांत हो गया मैंने बहुत कोशिश की सबकुछ ठीक करने की पर सब बेकार रहा। शालिनी ने बताया कि तमने  अभी तक शादी नहीं की, क्या मैं अब भी तुम्हारे काबिल हूं।पता नहीं तुम मेरे बारे में क्या सोचते हो, मैं बरसों से जिस पश्चाताप की अग्नी में,, जल रहा था आज मानों उससे मुक्ति का दिन आया। और बिना समय गंवाए
मैंने, बहन से उसक नंबर ले उससे कहा हां, मैं तुम्हें पहले समझ नहीं पाया और बाद में, अभी तक भूल नहीं पाया। मैं आ रहा हूं।
अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻

©Ashutosh Mishra
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