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कभी कभी उदासी इतनी बढ़ जाती है कि दिन भी अच्छा नह

कभी कभी उदासी 
इतनी बढ़ जाती है
कि दिन भी अच्छा नहीं लगता
और बैचेनी बढ़ जाती है

लगा कर अंधेरे को सीने से
आवाजें भी थम जाती हैं
एक अजीब सा भय सताता है
और आंखें नम हो जाती हैं

मन अशांत हो जाता है
धड़कन भी थमने लग जाती है
कार्य की व्यस्तता भी
उस आभास को नहीं भुला पाती है

कितना जिद्दी है ये उदासी मन
इसको तनिक भी लाज नहीं आती है
प्रसन्नता के लिए प्रयत्न करता हूं 
फिर भी ये आघात कर जाती है

कैसे निकलूं इस जंजाल से
ये तो चिपक कर रह जाती है
जितना इससे छूटना चाहता हूं
उतना ही ये और जकड़ जाती है
..................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #उदासी#nojotohindi

उदासी

कभी कभी उदासी 
इतनी बढ़ जाती है
कि दिन भी अच्छा नहीं लगता
और बैचेनी बढ़ जाती है
कभी कभी उदासी 
इतनी बढ़ जाती है
कि दिन भी अच्छा नहीं लगता
और बैचेनी बढ़ जाती है

लगा कर अंधेरे को सीने से
आवाजें भी थम जाती हैं
एक अजीब सा भय सताता है
और आंखें नम हो जाती हैं

मन अशांत हो जाता है
धड़कन भी थमने लग जाती है
कार्य की व्यस्तता भी
उस आभास को नहीं भुला पाती है

कितना जिद्दी है ये उदासी मन
इसको तनिक भी लाज नहीं आती है
प्रसन्नता के लिए प्रयत्न करता हूं 
फिर भी ये आघात कर जाती है

कैसे निकलूं इस जंजाल से
ये तो चिपक कर रह जाती है
जितना इससे छूटना चाहता हूं
उतना ही ये और जकड़ जाती है
..................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #उदासी#nojotohindi

उदासी

कभी कभी उदासी 
इतनी बढ़ जाती है
कि दिन भी अच्छा नहीं लगता
और बैचेनी बढ़ जाती है
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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